राष्ट्रव्यापी समस्या बनता प्रदूषण - डॉ. संदीप कटारिया


 
क्राइम रिफॉर्मर एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. संदीप कटारिया ने बताया कि शहर के समय दिल्ली और आसपास के इलाकों में प्रदूशण की जिस समस्या ने लोगों का ध्यान खींचना शुरू किया था वह दिवाली आते-आते और अधिक गंभीर रूप लेती दिख रही है। अंदेषा है कि दिवाली के बाद प्रदूशण में और वृद्धि हो  सकती है। इसका कारण पराली जलना तेज होना, तापमान में गिरावट आना और दिवाली पर पटाखे छोड़े जाना है। यह एक तथ्य है कि बीते कुछ दिनों से दिल्ली के साथ-साथ उउत्तर भारत के अन्य शहरों में वायु की गुणवत्ता में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है। वायु प्रदूशण हमारे शहरों की एक स्थाई समस्या बनता जा रहा है। आम तौर पर गर्मी में प्रदूशण का दोश राजस्थान-पाकिस्तान से आने वाली धूल को दे दिया जाता है और ठंड में पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने वाले किसानों को। हालांकि दिल्ली एनसीआर में वायु प्रदूशण को नियंत्रित करने के लिए कई तरह की कोषिष की गई हैं, लेकिन वे एक हद तक ही कामयाब हुई हैं। भले ही दिल्ली और आसपास के इलाकों में प्रदूशण की गंभीर स्थिति पर सुप्रीम कोर्ट से लेकर एनजीटी तक का ध्यान केंद्रित रहता हो, लेकिन सच्चाई यह है कि दिल्ली सहित पूरे उत्तर भारत के शहरों का हाल काफी कुछ दिल्ली जैसा ही है। जहां दिल्ली एनसीआर का प्रदूशण चर्चा का विशय बनता है वहीं अन्य शहरों में प्रदूशण की गंभीरता को लेकर कोई ठोस चर्चा भी नहीं हो पाती।
हालांकि दूशित होता पर्यावरण विष्व व्यापी समस्या है, परंतु जिन देषों में उसकी गंभीरता भयावह रूप लेती जा रही है उनमें भारत भी है। यह खौफनाक है कि दुनिया भर में प्रदूशण की वजह से मरने वालों में भारतीयों की हिस्सेदारी बढती जा रही है। पिछले साल आई क्यूएअर विजुवल और ग्रीन पीस की रिपोर्ट ने बताया था कि दुनिया के शीर्श पांच प्रदूशित शहरों में पाकिस्तान के फैसलाबाद के अलावा भारत के चार शहर थे। शीर्श 10 प्रदूशित शहरों में भारत के सात शहर थे। इसी तरह शीर्श 30 प्रदूशित शहरों में सबसे ज्यादा प्रदूशित 22 शहर हमारे थे। ग्रीनपीस के एक और अध्ययन में यह पाया गया  कि शुद्ध वायु के मामलों में भारत का एक भी शहर  विष्व स्वास्थ्य संगठन के मापदंड़ों पर खरा नहीं उतर सका।
 आम तौर पर दिल्ली और आसपास के इलाके में फैलने वाले प्रदूशण के लिए पंजाब, हरियाणा और पष्चिमी उत्तर प्रदेष के कुछ हिस्सों में जलाई जाने वाली पराली को जिम्मेदार बताया जाता है, मगर यह सिर्फ एक कारण है। वायु प्रदूशण के अन्य कारणों में बढ़ते वाहन, यातायात जाम, सड़कों और निर्माण स्थलों से उड़ने वाली धूल और कल-कारखानों का धुआं भी है। दिल्ली में बाहर से आने वाले हजारों ट्रक यहां के हालात और भी गंभीर बनाते हैं। एक अनुमान के अनुसार दिल्ली की सड़कों पर रोज 40000 लीटर ईंधन यानी पेट्रोल-डीजल महज यातायात जाम के कारण  बर्बाद हो जाता है। जब कोई वाहन 40 किलोमीटर प्रति घंटे से कम गति पर चलता है तो उससे निकलने वाला प्रदूशण कई गुना बढ़ जाता है। बढ़ते प्रदूशण के जो भी कारण हैं उनके मूल में बढ़ती जनसंख्या है। जनसंख्या नियंत्रण पर ध्यान दिया जाना चाहिए। अगर यह सोचा जा रहा है कि केवल पराली दहन और पटाखों पर रोक लगाकर प्रदूशण से निपटा जा सकता है तो यह सही नहीं। पर्यावरण को सुधारने के उपायों के तहत कहीं न कहीं बढ़ती हुई जनसंख्या को भी नियंत्रित करने पर ध्यान देना होगा। बढ़ती आबादी केवल विकास के असर  को ही कम नहीं करती, बल्कि प्रदूशण की समस्या को गंभीर बनाने का काम करती है।
बढ़ते प्रदूशण के चलते साइबेरिया सहित तमाम सुदूर देषों से आने वाले पक्षियों ने अब भारत से किनारा करना शुरू कर दिया है। दिल्ली स्थिति यमुना बायोडायवर्सिटी पार्क के आंकड़े बताते हैं कि प्रवासी परिंदों की संख्या में पिछले कई वर्शों में लगातार कमी आई है। अगर यही हाल रहा तो परिंदे हमसे मुंह मोड़ लेंगे और यह बताने वाली बात नहीं कि यदि परिंदे पलायन की शुरूआत करते हैं तो सिलसिला इंसानों तक जा सकता है। वायु की खराब गुण वत्ता का सीधा रिष्ता दिल की बीमारी , फेफड़ों के कैंसर, दमा और सांस के रोगों से है। वायु प्रदूशण का सबसे ज्यादा असर बच्चों पर हो रहा है। वायु प्रदूशण के कारण छोटे बच्चों में डायबिटीज बढ़ती जा रही है। बच्चों में तो जन्म से पहले गर्भ में ही वायु प्रदूशण जनित मुष्किलें शुरू हो जाती है। साफ है कि प्रदूशण के मामले में केवल चिंता जताने का समय निकल गया है।