क्राइम रिफॉर्मर एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. संदीप कटारिया ने बताया कि बाल मजदूरी को लेकर स्थानीय प्रषासन का रवैया कितना ढुलमुल है इसका अंदाजा इसी बात से लाया जा सकता है कि राष्ट्रीय के राष्ट्रीय राजमार्ग से लगते हुए ज्यादातर ढाबों, चाय के होटल और ईंट भट्टों पर बाल मजदूर काम करते रहते हैंं। लेकिन प्रषासन इन ढाबों, चाय के होटलों और ईंट के भट्टों पर काम करने वाले मजदूरों के बारे सब कुछ जानते हुए भी अनजान बना रहता है। इन ढाबे और भट्टा मालिकों के खिलाफ किसी भी तरह की कोई भी कार्रवाई प्रषासन नहीं कर सका है। वैसे तो सरकार इन बाल मजदूरों के खिलाफ समय-समय पर अभियान चलाकर बाल मजदूरी से मुक्ति दिलाने के दावे करती है परन्तु हकीकत दावों से कोसों दूर है।
केन्द्र सरकार द्वारा इन बाल मजदूरों के खिलाफ सख्त कानून बना दिए जाने के बावजूद भी इस दिषा में कोई खास तरक्की नहीं हो पाई है। शहर में ढाबे, होटलों और व्यापारिक संस्थानों में दिन रात बाल मजदूर काम करते देखे जा सकते हैं। वैसे कोई भी माता पिता अपने छोटे-छोटे बच्चों को मजदूरी करते हुए नहीं देख सकता परन्तु मजबूरी के चलते ही इन्हें काम में धकेला जाता है। इन बाल मजदूरों को दो वक्त की रोटी जुटाने के लिए मजूदरी करनी पड़ती है। दिनभर की हाड़तोड़ मेहनत के बाद ये मजूदर दो टाइम की रोटी का जुगाड़ कर पाते हैं। सरकार के तमाम दाबों के बावजूद भी इन बाल मजदूरों को बचपन सुरक्षित नहीं है।
वैसे होटल और ढाबों पर इन बाल मजदूरों तभी तक काम मिलता है जब तक ये ठीक होते हैं परन्तु इन बाल मजदूरों के बीमार होने पर इनके मालिकों द्वारा बाल मजदूरों को बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है। वैसे किसी बाल मजदूर की रोजी रोटी अगर छिनती है तो उसके परिवार के किसी व्यस्क सदस्य के लिये रोजगार की जिम्मेदारी प्रशासन की होती है। जिसके लिये सरकार ने नरेगा जैसी अनेकों योजनाऐं लागू कर रखी हैं। ईंट भट्टों पर मजदूरी करने वाले ज्यादातर परिवारों के बच्चे अपने माता-पिता का हाथ बंटाते हुए देखे जा सकते हैं। हालांकि प्रशासन द्वारा इन बाल मजदूरों को मुक्त कराने के लिये कभी कभार अभियान भी चलाया जाता है लेकिन कुछ ही समय बाद इन बाल मजदूरों के खिलाफ चलने वाले अभियान की हवा निकल जाती है। इन बाल मजदूरों के खिलाफ चलने वाले अभियान की हवा निकल जाती है। इन बाल मजदूरों के मालिकों को पता है कि प्रषासन द्वारा कभी भी किसी प्रतिष्ठान के खिलाफ कोई सख्त कानूनी कार्यवाही नहीं की जाती है।
डा. कटारिया ने बताया कि प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा मात्र सख्त लहजे में हड़काकर सरकारी आदेषों की खाना पूर्ति कर दी जाती है तथा आगे से इन बाल मजदूरों द्वारा मजदूरी ना कराने की हिदायतें द्वारा मजदूरी देकर वक्स दिया जाता है। प्रषासन की नाक के नीचे हसनपुर चैक पर लगने वाली रहड़ियों पर भी बाल मजदूरों को देखा जा सकता है। शहर के लगभग सभी ढाबों, होटलों मिठाई की दुकानों व अन्य छोटी-मोटी दुकानों पर बच्चों चाय पिलाते, साफ सफाई करते और बर्तन साफ करते हुए आसानी से देखे जा सकते हैं। लेकिन ऐसा लगता है कि ये बाल मजदूर शायद लेवर अधिकारी को दिखते ही ना हों। स्थानीय प्रषासन के लचर रवैये के चलते बाल मजदूरी में इजाफा होता जा रहा है। प्रषासन इन बाल मजदूरों के बारे में सब कुछ जानते हुए खुली आंखों से देखते हुए भी अनजान बना हुआ है। डा. कटारिया ने बताया कि सरकार तब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाती जब तक किसी ढाबे व ईंटों के भट्टे पर किसी बाल मजदूर के साथ कोई दुर्घटना घटित नहीं हो जाती। दुर्घटना घटित हो जाने पर ही प्रशासन हरकत में आता है तथा ऐसे मामलों में भी इनके मालिकों के साथ मिलीभगत कर मामले को ठंड़े बस्ते में ड़ाल दिया जाता है।