नन्हे बच्चों की मौत पर सरकार हाथ पर हाथ रखे बैठी है - डॉ. संदीप कटारिया



 क्राइम रिफॉर्मर एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. संदीप कटारिया ने बताया कि राजस्थान के कोटा जिले के जेके लोन सरकारी अस्पताल में महज चंद दिनों में 105 नवजात बच्चों की मौत एक बार फिर यह बताने के लिए काफी है कि देश का स्वास्थ्य ढांचा किस हाल में है। इससे पहले देश उत्तरप्रदेश के गोरखपुर और बिहार में बच्चों का यूं ही मौत के आगोश में जाता देख चुका है। इतना होने के बाद भी हमारी व्यवस्था इस पर कितनी गंभीर है, इसका प्रमाण राजस्थान के मुख्यमंत्री अशो क गहलोत का वो बयान है, जिसमें वो कह रहे हैं कि इतने कम समय में इतनी बड़ी संख्या में बच्चों की मौत कोई नई बात नहीं हैं। उनके सेहत मंत्री ने भी यह कहने में संकोच नहीं किया कि ऐसा तो होता ही रहता है। ऐसे बयानों से साफ है कि जिन नेताओं को जनता ने जनादेशदेकर सुविधाएं उपलब्ध करवाने का जिम्मा सौंपा है, वे नौनिहालों की मौत पर कितने गंभीर हैं। जब नेता संवेदनहीनता की पराकाश्ठा करेंगे तो उस सरकार के अफसर कैसे होंगे, इसी का नमूना है कि जब स्वास्थ्य मंत्री बच्चों की मौत के कारणों की जानकारी लेने अस्पताल पहुंचे तो उनके स्वागत में हरे रंग का कालीन बिछाया गया। इन अधिकारियों ने तमाम में चापलूसी की हदंे पार कर डाली। अस्पताल में पिछले 34 दिन में 105 मौतें हो चुकी हैं।
इसके बावजूद जयपुर से महज 4 घंटे की दूरी होने के बावजूद प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री रघु शर्मा ने अस्पताल का दौरा तक नहीं किया था। अस्पताल में उनके आने की खबर आई तो प्रशासन ने रातों-रात अस्पताल का कायाकल्प कर दिया। सभी वार्ड में सफाई और पुताई हो गई बेड पर नई चादरें बिछा दी गईं। मरीजों और उनके परिजनों से कहा गया कि वे स्वास्थ्य मंत्री के सामने सब कुछ अच्छा ही बताएं। मंत्री के स्वागत में ग्रीन कारपेट बिछा दिया गया, लेकिन जब किरकिरी हुई तो इसे हटा लिया। बच्चों की मौतों के कारण उनका वनज कम होना बताया जाना भी लीपापोती का ही प्रमाण जान पड़ता हैं कोटा के इस अस्पताल की दयनीय दषा का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि वह आवष्यक उपकरणों के साथ ही मेडिकल स्टाफ की कमी से भी जूझ रहा है।
इतना ही नहीं, जब राज्य सरकार की एक समिति इस अभागे अस्पताल का दौरा करने गई तो उसने वहां पर सुअर टहलते मिले। इतना होने के बाद भी राज्य सरकार अस्पताल में सुविधाएं जुटाने और बच्चों की मौत पर गंभीर होती नजर नहीं आई। सरकार और उसके मंत्री बच्चों की मौत पर संवेदनषीलता दिखाने से ज्यादा नागरिकता संषोधन बिल का विरोध करने में मस्त रहे। इसी से नाराज केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह  ने बच्चों की मौत के मामले में राज्य सरकार पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पहले कोटा में मर रहे बच्चों की चिंता करनी चाहिए। नागरिकता संषोधन एक्ट का विरोध बाद में करते रहिएगा। इससे पहले उत्तरर प्रदेष की मुख्यमंत्री मायावती कांग्र्रेस नेता प्रियंका गांधी को भी लताड़ चुकी हैं। यह जरूरी भी है, जो सरकार लगातार 34 दिनों तक नौनिहालों की मौत पर गंभीर न हो, उसके मंत्री को अस्पताल तक जाने की फुर्सत न मिले तो भावी पीढ़ी की सुरक्षा की जिम्मेदारी कौन लेगा।
निःसंदेह बच्चों की मौत पर किसी तरह की राजनीति निंदनीय है, लेकिन कोई यह कैसे भूल सकता है कि जब गौरखपुर के एक अस्पताल में बच्चों की मौत का मामला सामना आया था तो कांग्रेस ने राजनीति चमकाने के लिए आसमान सिर पर उठा लिया था। राजनीति अपनी जगह पहली नजर में ही साफ दिख रहा है कि लापरवाही, सुविधाओं, डॉक्टरों व आधुनिक स्वास्थ्य उपकरणों की कमी बच्चों की मौत का कारण है। अब सरकारी तंत्र की ढिलाई और लापरवाही को उजागर किया जाना चाहिए, लेकिन इसी के साथ कोशिश इसकी भी होनी चाहिए कि बदहाली के आलम से छुटकारा कैसे मिले? यह कोशिश होनी चाहिए कि अब एक भी बच्चा मौत का ग्रास न बने। इसके लिए जरूरी है कि सरकार और सेहत महकमा गंभीरता से काम करें और कर्तव्य की इतिश्री करने की ताक में न रहें।


 



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