क्राइम रिफॉर्मर एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. संदीप कटारिया ने बताया कि हर व्यक्ति के जीवन का लक्ष्य होता है कि उसमें कुछ विशिष्ट गुण और विलक्षणताएं हों जिनके दम पर वह दूसरों को अपनी ओर आकर्शित कर सके। इस लक्ष्य तक पहुंचने के लिए जरूरी है कि व्यक्ति स्वयं के प्रति ईमानदार हो। यानी अपने आपको धोखा न दे, अपनी नजर में न गिरे। इसके अतिरिक्त दूसरों के साथ भी छल-फरेब, बेईमानी की नीति न अपनाए। विशिष्ट व्यक्तित्व बनने के लिए यह भी जरूरी है कि व्यक्ति अपने जीवन में संतुलन का विकास करे। जहां जीवन है वहां उतार-चढ़ाव भी आते हैं। जो परिस्थितियों को मध्यस्थता से झेलता है तथा निराशा खिन्नता एवं उदासीनता से दूर रहता है, उसी के भीतर आशा, प्रसन्नता एवं खुशियों की रोशनी फैली रहती है।
आज जिंदगी समस्याओं से संकुचित हो रही है क्योंकि भौतिकता प्रधान एवं आध्यात्मिकता गौण हो रही है। आवेष, उŸोजना एवं चंचलता से जीवन की धारा बदल गई है, इसलिए मन में अशांति बढ़ रही है। हमने खुद को कई गैरजरूरी चीजों से घेर रखा है, जो गाहे-बगाहे हमें भटकाती ही हैं। सफलता की चाबी है अनुशासन। लाइफ कोच एंडी सेटोविट्ज कहती हैं, ‘अनुशासन का मतलब है खुद से पूछना कि मेरे इस समय का सबसे अच्छा इस्तेमाल क्या है? और फिर उसमें जुट जाना। हर दिन थोड़ा आगे बढ़ना ही हमें बड़ी सफलता की ओर ले जाता है।’
व्यक्ति के भीतर शक्तियों का अकूत खजाना है। अपनी इन शक्तियों को जगाकर उसका उपयोग कर व्यक्ति अनेक परिस्थितियों को सह सकता है। भविश्य की चिंता में खोने वाला व्यक्ति वर्तमान के सुख को भूलता जा रहा है। कल्पनाओं का हवाई महल निर्मित कर दुख का जाल बुनता जा रहा है। व्यक्ति अगर कल्पना को आकार दे और वर्तमान में जिए तो शांति की सांस लेने में सफल हो सकता है। आवष्यकता इस बात की है कि व्यक्ति सपने देखे तो सपनों में रंग भी भरे। विषिश्टता का बीज हमारे अंदर है अर्थात शक्ति का स्त्रोत हम खुद हैं। हम ही अपने भाग्य के निर्माता हैं, लेकिन हम अपनी शक्ति का उपयोग तभी कर सकेंगे जब उसे पहचानेंगे।
नई मंजिलों की चाह रखने वालों को राहें भी नई तय करनी पड़ती हैं। हर रोज एक ही रास्ते पर चलने से, देखे-भाले नजारे ही दिखते हैं। हमारी समस्या यह है कि हम नजारे नए देखना चाहते हैं, पर पुराने रास्तों को छोड़ने का जोखिम नहीं उठाना चाहते। हमें यह याद रखना ही होगा कि अगर कुछ ऐसा पाना चाहते हैं, जो पहले नहीं है, तो उसके लिए करना भी कुछ ऐसा ही होगा, जो पहले कभी नहीं किया। जब व्यक्ति के भीतर कुछ करने की चाह जाग्रत हो जाती है तो वह असंभव कार्य भी संभव कर देता है।
भाग्य की सृश्टि प्रत्येक व्यक्ति के हाथ में होती है। वह पुरूशार्थ के द्वारा अपनी भाग्य की दिश को घुमा सकता है। भाग्य के भरोसे रहने वाला कोई भी महान नहीं बनता। जितने भी महापुरूश बने हैं वे भाग्य के अधीन नहीं रहे, बल्कि अपने श्रम से भाग्य को बनाते रहे। सफलता के द्वार पर दस्तक देने के लिए चरैवेति-चरैवेति का सूत्र जीवन में आत्मसात करना होगा। जीवन की सबसे बड़ी पूंजी है- सही दृश्टिकोण। जब तक दृश्टि सही नहीं होती तब तक व्यवहार भी अच्छी नहीं हो सकता। सही वस्तु को सही माने बिना सही दिशा का चुनाव भी नहीं हो सकता। दृश्टि को मिथ्या बनाए रखने वाले अनेक स्थानों से पदच्युत व दिशाभ्रमित हो जाते हैं।
वर्तमान में सुख तलाशना भविष्य की सफलता है- डॉ. संदीप कटारिया