जनसंख्या नियंत्रण के लिए कठोर कदम जरूरी - डॉ. संदीप कटारिया


क्राइम रिफॉर्मर एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. संदीप कटारिया ने बताया कि गत वर्श 2019 में संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोश की ओर से जारी स्टेट ऑफ वर्ल्ड पॉपुलेशन रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2010 से 2019 के बीच भारत की आजादी औसतन 1.2 फीसदी बढ़ी है, जो चीन की सालाना वृद्धि दर के दोगुने से भी ज्यादा है। यह आंकड़ा इशारा कर रहा है कि भारत में किस खतरनाक तरीके से जनसंख्या विस्फोट हो रहा है। अभी भारत की जनसंख्या करीब 1.37 अरब है तो चीन की 1.43 अरब है। उम्मीद है कि भारत 2027 तक चीन को पछाड़कर दुनिया का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन जाएगा। भारत में 2050 तक 27.30 करोड़ लोग बढ़ जाएंगे, इसलिए जनसंख्या नियंत्रण पर राष्ट्रीय बहस और नीति जरूरी है। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने सही समय पर सही मुद्दा उठाया है। उन्होंने कहा कि सरकार जनसंख्या नियंत्रण को लेकर सरकार उचित कदम उठाए। बच्चे कितने हों, यह सरकार तय करे। दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक राष्ट्रीय महत्व के मुद्दे पर भी एनआरसी, सीएएव एनपीआर की तरह राजनीति “ाुरू हो गई है। जब तक हम जनसंख्या जैसे मुद्दे को भी मजहबी चश्मे से देखते रहेंगे, राजनीति के लिए कठोर कदम उठाने से बचते रहेंगे, तब तक जनसंख्या नियंत्रण का लक्ष्य हासिल कर पाना संभव नहीं होगा। भारत ने 1952 में विश्व में सबसे पहले परिवार नियोजन कार्यक्रम शुरू किया था। उस वक्त सरकार ने माना कि जनसंख्या विस्फोट विकास में बाधक है और जनसंख्या नियंत्रण के बिना विकास संभव नहीं। तीन पंचवर्शीय योजना तक परिवार नियोजन सरकारी योजनाओं के केंद्र में रहा। 1975 में इंदिरा के आपातकाल के समय जबरन नसबंदी जैसे डराने वाले कार्यक्रम भी चले, जिसका तीव्र विरोध हुआ। विरोध होना लाजिमी था, कारण जोर-जबरदस्ती से कोई कार्यक्रम नहीं चल सकता। उसके बाद सरकारी स्तर पर जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रम केवल परिवार नियोजन के नारे ‘ हम दो हमारे दो’ तक सीमित रहा। अब यह नारे भी कुंद पड़ गए हैं। जनसंख्या पर ढुलमुल नीति के चलते कभी यह मिशन नहीं बन सका, जैसे चीन ने एक बच्चे की नीति को कठोरता से लागू किया। दुनिया में चीन, रूस और अमेरिका उदाहरण हैं, जिसने जनसंख्या नियंत्रण के लिए कठोर नियम बनाए। भारत में सबसे पहले जनसंख्या नीति बनाने को सुझाव 1960 में एक विषेशज्ञ समूह ने दिया था। 1976 में पहली जनसंख्या नीति बनी। 1981 में इसमें कुछ संशोधन किए गए। इस नीति के तहत जन्म दर तथा जनसंख्या वृद्धि में कमी लाना, विवाह की न्यूनतम आयु में वृद्धि करना, परिवार नियोजन को प्रोत्साहित करना और महिला शिक्षा पर विषेश जोर देने का लक्ष्य रखा गया था। फरवरी 2000 में राष्ट्रीय जनसंख्या नीति की घोशणा हुई व प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग का गठन किया गया। इसमें लक्ष्य जोड़ा गया कि 2045 तक जनसंख्या में स्थायित्व प्राप्त करना है। अभी देश में 1996 से काहिरा मॉडल लागू है जिसके तहत आबादी को घटाने के लिए आम जनता पर किसी प्रकार का दबाव नहीं डाला जाता है, बल्कि शिक्षा के जरिए उनमें छोटे पविार के प्रति एहसास जगाया जाता है। चीन को छोड़ पूरी दुनिया में अभी यही फार्मूला लागू है, लेकिन इस फार्मूले से 2045 में जनसंख्या के स्थिर होने का लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सकता है। जनसंख्या विस्फोट के कारण बेरोजगारी, खाद्य समस्या, कुपोशण, प्रति व्यक्ति निम्न आय, निर्धनता में वृद्धि और कीमतों में वृद्धि जैसे दिक्कतें उभरकर सामने आई हैं। इसके साथ ही कृशि विकास में बाधा, बचत तथा पूंजी निर्माण में कमी, जनोपयोगी सेवाओं पर अधिक व्यय, अपराधों में वृद्धि, पलायन और शहरी समस्याओं में वृद्धि जैसी दूसरी समस्याएं भी पैदा हुई हैं। इनमें सबसे बड़ी समस्या बेराजगारी की है। एक वर्श बाद 2021 में जनगणना होगी तो आधिकारिक रूप से हमे पता चलेगा कि देश की आबादी कितनी हो गई, लेकिन हम चीन के नजदीक पहुंच चुके होंगें। ऐसे में हमें राजनीति से ऊपर उठकर नई जनसंख्या नीति बनानी होगी और उसका कठोरता से पालन कराना होगा। उसके लिए स्वस्थ बहस हो, विमर्ष हो। क्योंकि इससे पहले देश में कई बार जनसंख्या को लेकर नीति बनी है, लेकिन जनसंख्या वृद्धि नियंत्रित नहीं हो सकी है।


 


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