सम्मान-अपमान शब्दों के खेल हैं स्वयं कों सहज रखें - डॉ. संदीप कटारिया

 


क्राइम रिफॉर्मर एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. संदीप कटारिया ने बताया कि शीत ऋतु की हाड़ कंपाती ठंड में गर्मी पाने के लिए अलाव की आग बड़ी सुखकर लगती है परंतु ग्रीश्म ऋतु आने पर जब गर्मी बढ़ जाती है तो दीपक की लौ भी खटकने लगती है। इसी तरह हमारे प्रति किसी के क्रोध के पीछे जब सुलगता हुआ प्रेम होता है तब उसका भयंकर क्रोध के पीछे जब सुलगता हुआ प्रेम होता है तब उसका भयंकर क्रोध भी हमें व्याकुल नहीं करता अपितु अच्छा ही लगता है। लेकिन अगर उस क्रोध करने वाले व्यक्ति का बोला गया मामूली सा भी कोई शब्द या कृत्य हमें अपमानजनक लगता है।
सच तो यह है कि अपमान जैसी कोई स्थिति होती ही नहीं है। न किसी का अपमान होता है, न ही कोई कर सकता है। हमने अपने मन में सम्मान की इतनी अधिक अपेक्षा पाल रखी है कि जरा सी उपेक्षा से हम अपने को अपमानित महसूस करने लगते हैं। किसी ने हमें आदर से बुलाया और किस ने दुत्कार दिया। ये दोनों शब्द ही तो हैं। किसी ने सम्मान की पांच बातें कह दीं और किसी ने पांच गालियां दे दीं। गाली देने वाले ने अपनी वाणी अवष्य दूशित की, लेकिन यदि हमारे मन में मान-अपमान की भावना न हो तो इन शब्दों से हमारा बना-बिगड़ा कुछ नहीं। फिर भी हम स्वयं ही एक कल्पना कर लेते हैं कि हमारी कितनी अप्रश्ठिा हो गई। यह कल्पना हमारे सम्मान की द्योतक नहीं, हमारा अभिमान है। जो सम्मान की कामना रखे वह अभिमानी और जो थोड़ा भी अपमान सहन न कर सके, वह भी अभिमानी। जीवन का सबसे अच्छा सूत्र है - न किसी का अपमान करें और न कभी अपने को अपमानित महसूस करें।
हम सभी वैचारिक आग्रह से बंधे हैं। हमारे सबके अपने-अपने गणित हैं। लेकिन हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि सह-जीवन के लिए वैचारिक सहिश्णुता भी अनिवार्य है। सहनषील होना औरों के लिए नहीं अपितु अपने लिए अधिक लाभदायी है। यह है भी बहुत सरल। अगर हम एक बार स्वार्थ और शंका से दृश्टि हटाकर गुणों के ग्राहक बन जाएं तो हमें हर कोई और उसके गुण अच्छे लगने लगेंगे। दोश मुक्ति के प्रति होना है दोशों के प्रति नहीं। संसार के समस्त जीवों को दोश से मुक्त करने की न हमारी जिम्मेदारी है, न ही सामथ्र्य है। किंतु उन समस्त जीवों के प्रति प्रेम रखने की हममें शक्ति तो है ही।
कोई अगर अपने प्रेम का दायरा छोटा करके उससे हमें बाहर निकाल दे तो हमें अपने प्रेम के दायरे को इतना बड़ा बना देना चाहिए जिससे उसका छोटा दायरा हमारे दायरे में समा जाए। दूसरों की भावनाओं का सम्मान इसलिए भी जरूरी है कि यह हमारे लिए कुछ भी न हो, लेकिन उसके लिए बहुत मायने रखता है। हमारे पास देने के लिए कुछ न भी हो तो निराष नहीं होना है। प्यार और सम्मान के कुछ शब्द देने से ही हम हमेषा के लिए किसी के दिल में जगह बना सकते हैं।
ब्लॉटिंग पेपर पर गिरी स्याही की एक बूंद जिस तरह दूर तक फैल जाती है, वैसे ही हृदय पर कब्जा कर परस्पर संबंधों में तीव्र कड़वाहट पैदा कर देती है। ऐसे में अपमान और तिरस्कार से परे प्रेम-पूर्वक मित्रता करना ही एकमात्र उपाय है। इसके साथ ही हमारा स्मृति में यह सूत्र सदैव रहे - जीवन का प्रारंभ प्रेम से और समाप्ति परमात्मा से।