मंदी की मार से अब कताई उद्योग भी संकट में - डॉ. संदीप कटारिया

क्राइम रिफॉर्मर एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. संदीप कटारिया ने बताया कि देश के कताई उद्योग तक मंदी की मार पहुंच गई है। कताई उद्योग अब तक के सबसे बड़े संकट से गुजर रहा है। देश की करीब एक-तिहाई कताई उत्पादन क्षमता बंद हो चुकी है और जो मिलें चल रही हैं। वह भी भारी घाटे का सामना कर रही है। अगर यह संकट दूर नहीं हुआ तो हजारों लोगों की नौकरियां जा सकती है। कॉटन और ब्लेंड्स स्पाइनिंग इंडस्ट्री कुछ उसी तरह के संकट से गुजर रही है। ऐसा ही मंदी का समय 2010-2011 में देखा गया था।


नॉर्दर्न इंडिया टेक्सटाइल मिल्स एसोसिएशन के अनुसार राज्य और केंद्रीय जीएसटी और अन्य करों की वजह से भारतीय यारन वैष्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा के लायक नहीं रह गया है। अप्रैल से जून की तिमाही में कॉटन यार्न के निर्यात में साल-दर-साल 34.6 फीसदी की गिरावट आई है। जून में तो इसमें 50 फीसदी तक की गिरावट आ चुकी है।


कपास पर भी मंदी की मार पडेगी। अब कताई मिलें इस हालात में नहीं हैं कि भारतीय कपास खरीद सकें। यही हालत रही है तो अगले सीजन में बाजार में आने वाले करीब 80000 करोड़ रूपये के 4 करोड़ गांठ कपास का कोई खरीदार नहीं मिलेगा। कटाई से 10 करोड़ लोगों को रोजगार मिला है। गौरतलब है कि भारतीय टेक्सटाइल इंडस्ट्री में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से करीब 10 करोड़ लोगों को रोजगार मिला हुआ है। यह एग्रीकल्चर के बाद सबसे ज्यादा रोजगार देने वाला सेक्टर है। ऐसे में बड़े पैमाने पर लोगों के बेरोजगार होने की आशंका है। इसलिए नॉर्दर्न इंडिया टेक्सटाइल मिल्स एसोसिएषन ने सरकार से मांग की है कि तत्काल  कोई कदम उठाकर नौकरियां जानें से बचाएं और इस इंडस्ट्री को गैर निश्पादित संपत्ति बनने से रोकें। यह उद्योग कर्ज पर ऊंची ब्याज दर, कच्चे माल की ऊंची लागत, कपड़ों और यार्न के सस्ते आयात जैसी कई समस्याओं से तबाह हो रहा है। भारतीय मिलों को ऊंचे कच्चे माल की वजह से प्रति किलो 20 से 25 रूपये का नुकसान उठाना पड़ रहा है। इसके अलावा श्रीलंका, बांग्लादेष, इंडोनेशिया जैसे देषों के सस्ते कपड़ा आयात की दोहरी मार पड रही है।


गौरतलब है कि नौकरी पिछले कई साल से देश के लोगों की सबसे बडी चिंता बनी हुई है। आजतक-कार्वी इनसाइट्स द्वारा किए गए 'देश का मिजाज' सर्वे में शामिल ज्यादातर लोगों के लिए पिछले पांच साल की तरह इस साल भी यह चिंता की बात रही है। सर्वे में शामिल 35 फीसदी लोगों ने इसे सबसे बडी चिंता बताई है।


रोजगार के मोर्चे पर मोदी सरकार लगातार विपक्ष के निशाने पर रही है। तमाम आंकड़े पेश कर विपक्ष ने यह बताने की कोशिश की है कि मोदी सरकार रोजगार के मोर्चे अपने लक्ष्य को हासिल करने में नाकाम रही है।