क्राइम रिफॉर्मर एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. संदीप कटारिया ने बताया कि दिल्ली में वकीलों और पुलिस के बीच बढ़ता तनाव न्याय और कानून-व्यवस्था के लिए दुःखद और चिंताजनक है। तीस हजारी कोर्ट परिसर में पार्किंग को लेकर हुए विवाद और पुलिस फायरिंग को लेकर दोनों आमने-सामने आ गए हैं। इस भिंडत के तुरंत बाद वकीलों ने देश भर में हड़ताल का ऐलान कर दिया वहीं पुलिसकर्मियों ने भी आंदोलन की राह पकड़ ली। पुलिसवालों को कहना है कि मामले की जांच हुए बिना लॉ ऐंड आॅर्डर के स्पेशल कमिष्नर संजय सिंह और अन्य बड़े अफसरों को हटाने के आदेश दिए गए? पुलिस वालों के खिलाफ केस दर्ज किए गए। काले कोट वाले अब भी पुलिस पर हमले कर रहे है। जिससे दिल्ली पुलिस असहाय महसूस कर रही है। वहीं दूसरी और वकीलों की हड़ताल से न्याय के लिए अदालत पहुंच रहे लोगों को मायूस होकर वापस लौटना पड़ रहा है। क्या कोई इस पर विचार करेगा कि वकीलों की हड़ताल से देशभर में जो लाखों लोग परेशान हए उनका क्या दोश था? आखिर उन्हें किस बात की सजा मिली? कानून की रक्षक पुलिस और कानून के सहायक वकीलों के बीच रिश्ते किस तरह बिगड़ रहे हैं,
डा. कटारिया ने बताया कि इसका एक नमूना कुछ दिन पूर्व उत्तर प्रदेश के कानपुर में भी देखने को मिला था। यहां वकीलों और पुलिसकर्मियों के बीच मामूली विवाद के बाद वकीलों ने वरिश्ठ पुलिस अधीक्षक के कार्यालय का घेराव करके पत्थरबाजी के साथ तोड़फोड़ भी की। दुर्भाग्य यह है कि अब ऐसा ही अधिक हो रहा है। आखिर विरोध दर्ज कराने के लिए हिंसा का सहारा लेने का क्या मतलब? देश के किसी न किसी हिस्से में वकीलों और पुलिस के बीच रह-रहकर वैसा टकराव देखने को मिलता ही रहता है। यह ठीक नहीं कि तीस हजारी कोर्ट परिसर की घटना का हिंसक विरोध थमने का नाम नहीं ले रहा है। निःसंदेह वकीलों और पुलिस के बीच हिंसक टकराव की घटनाओं पर किसी एक पक्ष को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। इस तरह की घटनाओं में कभी पुलिस का मनमाना व्यवहार जिम्मेदार होता है तो कभी वकीलों का। कई बार दोनो पक्ष समान रूप से जिम्मेदार होते हैं। कहना कठिन है कि तीस हजारी की घटना के लिए कौन कितना जिम्मेदार है, लेकिन इसमें संदेह नहीं कि दोनों पक्षों की ओर से संयम का परिचय नहीं दिया गया। जैसे पुलिस का मनमाना व्यवहार नया नहीं, उसी तरह यह भी सही है कि वकीलों के समूह भी जब-तब हिंसा का सहारा लेना पसंद करते हैं। यह एक तरह की भीड़ का हिंसा का ही रूप है। इस पर रोक लगनी जरूरी है। पुलिस और वकील दोनों हमारी कानून और न्याय व्यवस्था के ऐसे पहिये है, जो एक दूसरे के पूरक हैं। एक का काम अपराधी को अदालत तक पहुंचाना है तो दूसरे का उसे सजा दिलवाना। अगर ये दोनों पहिये एक साथ न चलकर आपस में ही रगड़ खाते हैं तो पूरी व्यवस्था का अस्त-व्यस्त होना तय है। यह अच्छी बात है कि गृह मंत्रालय और बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने अपने-अपने स्तर पर मामले को बिगड़ने से पहले हालात सुधारने की पहले शुरू कर दी है, लेकिन जो हुआ उसे किसी भी सूरत में सही नहीं ठहराया जा सकता। डा. कटारिया ने बताया कि इस पूरे घटनाक्रम को ध्यान से देखें तो इसमें राजनीति की छाया भी नजर आती है। झड़प के बाद मुख्यमंत्री केजरीवाल घायल वकीलों का हाल जानने के लिए अस्पताल पहुंचे और वकीलों के प्रति सहानुभूति जताई, वो पुलिस कर्मियों के मनोबल को तोड़ने वाला था। नए साल की शुरूआत में दिल्ली में विधानसभा चुनाव होने हैं। राज्य की पुलिस केंद्र सरकार के अधीन काम करती है। राज्य सरकार पुलिस को कटघरे में खड़ा करके केंद्र को घेरने का प्रयास कररही है। जो गलत है। वोट के लिए लोकतांत्रिक व्यवस्था पर चोट करने को सही नहीं ठहराया जा सकता।