कांग्रेस को गांधी परिवार नहीं, सही गांधी की जरूरत

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीजेपी सांसदों को निर्देश दिया है कि महात्मा गांधी की 150वीं जन्मतिथि पर वे अपने संसदीय क्षेत्र में 150 किमी की पदयात्रा करें.







कांग्रेस में संकट दिन पर दिन गहराता जा रहा है, क्योंकि राहुल गांधी की जगह लेने के लिए कोई नेता नहीं मिला है. देश की सबसे पुरानी पार्टी इस बात से अनजान है कि उनकी समस्या नेहरू-गांधी परिवार की अनुपस्थिति नहीं, पहचान को हुई क्षति है.

कांग्रेस के पास खोने के लिए काफी कम बचा है. बीजेपी सभी वर्गों को अपनी ओर आकर्षित कर रही है और महात्मा गांधी, सरदार पटेल, बाबा साहेब आंबेडकर, जयप्रकाश नारायण और यहां तक कि पीवी नरसिम्हा राव जैसे आइकन को भी अपना बना रही है. नेहरू केवल वक्त की बात हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीजेपी सांसदों को निर्देश दिया है कि महात्मा गांधी की 150वीं जन्मतिथि पर वे अपने संसदीय क्षेत्र में 150 किमी की पदयात्रा करें, देश के सबसे महत्वपूर्ण प्रतीकों राष्ट्रवाद, सहिष्णुता, धर्मनिरपेक्षता, सामाजिक न्याय, संवैधानिकता, उदार लोकतंत्र और भारतीयता को साकार करने के लिए यह महत्वपूर्ण कदम है.

 

बीजेपी इस बात को अच्छी तरह जानती है कि देश के दिल और दिमाग पर छाने के लिए गांधीवादी मूल्यों का पालन अनिवार्य है. मोदी ने अपने पहले कार्यकाल में खादी को बढ़ावा दिया और स्वच्छ भारत अभियान को महात्मा गांधी को समर्पित किया. अब सांसदों को गांधी की अवधारणाओं का पालन करना अनिवार्य हो गया है.


राहुल ने पार्टी को मझधार में छोड़ा

इस बीच कांग्रेस रो-पीट रही है, इसलिए नहीं कि उसका आधार खत्म हो रहा है या उसके आइनक उससे छिटकते जा रहे हैं, बल्कि इसलिए की राहुल गांधी ने इस्तीफा दे दिया है. राहुल गांधी ने इस्तीफा देकर कांग्रेस को मझधार में छोड़ दिया. उन्होंने बिना किसी उत्तराधिकारी की योजना के इस्तीफा दिया. जो पार्टी आजादी के बाद से नेहरू-गांधी की छाया में रही उसे डूबने या तैरने के लिए छोड़ दिया.

कांग्रेस के अंतरिम अध्यक्ष पद के लिए कई नाम सामने आए हैं. इनमें कैप्टन अमरिंदर सिंह, एके एंटनी, केसी वेणुगोपाल और पी चिदंबरम शामिल हैं. युवा नेताओं में सचिन पायलट, ज्योतिरादित्य सिंधिया और मिलिंद देवड़ा का नाम आ रहा है. इनमें से कोई भी फिट नहीं लगता, लेकिन ऐसे समय में जब राज्य ईकाइयां आंतरिक लड़ाई में लगी हुई हैं और कर्नाटक में संकट चल रहा है तो कोई भी एक कदम आगे होगा.


क्या नए अध्यक्ष को स्वतंत्रता देगा गांधी परिवार?

क्या गांधी परिवार नए अध्यक्ष को काम करने की पूरी स्वतंत्रता देगा? अतीत में इसने पीवी नरसिम्हा राव और सीताराम केसरी जैसे नेताओं को बाहर कर दिया, जो बहुत स्वतंत्र साबित हुए. तब सोनिया गांधी ने प्रत्यक्ष नियंत्रण लिया. मनमोहन सिंह अधिक मिलनसार थे, लेकिन 2009 के लोकसभा चुनाव में उनकी सफलता ने खतरे की घंटी बजा दी.

अगर देश की सबसे पुरानी पार्टी जिंदा रहना चाहती है तो उसे कठोर फैसले लेने होंगे, सबसे पहले उसे ऐसे नेता का चुनाव करना होगा जो परिवार का सदस्य न हो. दूसरा पार्टी को वर्तमान राजनीति के अनुरूप ढालना होगा. तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण कांग्रेस के लिए 21वीं सदी का विजन स्पष्ट करना होगा.

बयानबाजी से नहीं होगा मुकाबला

कांग्रेस बयानबाजी से बीजेपी का मुकाबला नहीं कर सकती, जैसा कि उसने 2019 के लोकसभा चुनाव में करने की कोशिश की. बीजेपी भी गरीबों की भाषा बोलती रही है.

बीजेपी के विकल्प के रूप में खुद को फिर से मजबूत करने के लिए, कांग्रेस को राजनीतिक नैतिकता, संवैधानिकता और उदारवाद की पुराने शैली के मूल्यों को फिर से परिभाषित करने की जरूरत है. उसको फिर से मूल में वापस जाना चाहिए, प्रेरणा के लिए गांधी को देखना चाहिए. कौन से, अनुमान लगाने के लिए कोई पुरस्कार नहीं.