क्राइम रिफॉर्मर एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. संदीप कटारिया ने बताया कि भारत से आयात होने वाले सामानों पर सरकार एक बड़ा फैसले लेने जा रही है। जी हां भारत के सभी विकासषील सामानों के लिए इन 'मेड इन टैग' को अनिवार्य बनाया जा सकता है। इसमें बताना होगा कि वह सामान कहां बना है। सरकार का मानना है कि इससे खराब गुणवत्ता वाले सामानों की डंपिंग रोकने में मदद मिलेगी और घरेलू मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों को बढ़ावा मिलेगा। बता दें कि सरकार ने नॉन-प्रेफरेंषल रूल्स या ओरिजिन का काम “ाुरू किया है और यह योजना इसी का हिस्सा है। ये नियम उन देषों पर लागू होंगे, जिनके साथ भारत का व्यापार समझौता नहीं है। इनमें अमेरिका, यूरोपीय संघ, चीन, न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया जैसे देष शामिल हैं। इस मामले से वाकिफ अधिकारियों के अनुसार इन नियमों को अभी अंतिम रूप दिया जा रहा है। आपको बता दें कि मुक्त व्यापार समझौते के तहत देष में आने वाले सामान के बारे में उनके ओरिजिन की सूचना देनी पड़ती है, लेकिन सामान्य रास्ते या मोसट फेवर्ड नेषन दर्जे वाले देषों से आने वाले सामान के लिए ऐसी बाध्यता नहीं है। एंटी-डंपिंग और काउंटरवेलिंग डयूटी, व्यापार प्रतिबंध, सुरक्षा और जवाबी कार्रवाई मात्रा संबंधी पाबंदी जैसे नीतिगत उपायों के साथ कुछ टैरिफ कोटा के लिए नॉन-प्रेफरेंषल रूल्स का इस्तेमाल होता है। इन नियमों की मदद से कस्टम अधिकारी पता लगा देंगे कि कोई सामान कहां बना है। व्यापारियों को इसके लिए सर्टिफिकेट दिखाना होगा। इससे व्यापार नियमों का उल्लंघन रोकने में मदद मिलेगी। अभी किसी देष से आने वाले एक सामान पर एंटी-डंपिग डयूटी लगाई जाती है तो ट्रेडर टेरडर उससे बचने के लिए उसी सामान को किसी दूसरे देष से मंगाना शुरू कर देते हैं। इस तरह के कई मामले सामने आए हैं और कस्टम विभाग ऐसे आयात को रोकने में असफल रहा है। प्रस्तावित नियमों से उन्हें पता चलता है कि कोई सामान किस देष में बना है। यदि उसके साथ किसी व्यापार-संबंधित नियम का उल्लंघन हो रहा है, तो वे उस पर सीमा शुल्क लगाएंगे। किसी सामान के लिए जो तकनीकी मानक तय किए गए हैं, उसकी भी जांच की जाएगी। मिसाल के लिए, चीन से आने वाले खिलौनों में लेड तय मात्रा से अधिक होता है। नए नियम से अधिकारियों को इस चुनौती से असरदार ढंग से सामना करना होगा।