पगली पूरना

आज पूरना को मरे हुए दो हफ्ते हो गए। पुलिस के मुताबिक यह एक सड़क दुर्घटना थी। ज्यादा झंझट पुलिस को झेलना ही नहीं पड़ा। पूछताछ करने के लिए एक-दो बार पुलिस वाले मेरे घर भी आए। मैंने उनसे कहा कि मेरी तो बस हाय-हैलो तक ही दोस्ती थी। कभी बाहर तो निकलती ही नहीं थी। मैं उसे बाहर तो बहुत कम ही देखती थी। मैं कैसे बताती पुलिस को कि पूरना अंदर से पूरी तरह टूटी हुई थी। अपने आपको अकेला महसूस करती थी। बाहर से जितनी शांत व सौम्य दिखती अंदर से उतनी ही जर्जर महसूस करती थी। अंदर का दर्द किससे कहती।



अगर एक-दो बच्चे हो जाते तो उनमें रम जाती। मगर ऐसा हुआ नहीं। पुलिस को कैसे बताती कि उसका पति तो घर पर एक-दो दिन के लिए आता था।


भगवान जाने मामले की जांच-पड़ताल करना एक औपचारिकता थी पुलिस के लिए या फिर सच में सच जानने की खोज। क्योंकि कई लोगों से सुनने में यही आया कि सुशील यानी पूरना के पति का तो चक्कर उसकी कॉलेज की दोस्त से था।


रमाकांता यानि पूरना की सास नहीं मानी थी इस रिश्ते के लिए। बराबरी में तो रिश्ते अक्सर लोग करते हैं मगर रमाकांता ने तो मिसाल देनी थी समाज को एक गरीब, गरीब नहीं बहुत गरीब घर की लड़की लाकर।


तुलसी विवाह प्रथा में सुशील व पूरना का विवाह हुआ। विवाह में खर्च होने वाली रकम को भी रमाकांता ने उस संस्था को दे दिया जो गरीब परिवारों की शादी कराती थी।


समाज-सेविका ओढ़नी ओढ़कर मसल दिया था उसने पूरना के जज्बातों को, सपनों को। उसने इस बात का जिक्र तक किसी से नहीं किया था। बेचारी पूरना।


मुझे यहां आये सिर्पफ दो साल ही हुए थे जब भी पूरना से मिलती तो कहती पूरना को आने के लिए। वह बड़े ही खयाली अंदाज में कह देती-पुफर्सत जाने किन लोगों के पास होती है हमारे पास तो ये सोचने की कभी पुफर्सत नहीं। दो बार ही वह मेरे घर आयी थी। एक दिन अचानक ही घर की घंटी बजी तो मैंने पूरना को सामने पाकर आश्चर्य जताया। कैसी हो पूरना? अचानक! आओ बातें करते हैं मैंने कहा। दस मिनट ही बातें हुईं थीं हमारी कि पूरना बोली, चलो दीदी मुझे जाना है।


अरे बैठो मुश्किल से तो आई हो। सच में दीदी मुझे  नहीं पता था कि बड़े व प्रतिष्ठित घर में शादी का मतलब अंदर ही अंदर घुटना होता है। उसे बाहर तक छोड़ते हुए मैं बोली ऐसा नहीं होता।


आजादी छीननी पड़ती है, हथियानी पड़ती है, लड़ाई लड़नी होती है अपनों से। कैसी लड़ाई दीदी? मेरी सास तो इतनी अच्छी है। वह तो कितने लोगों की दुआओं में शामिल होंगी। पति, इतने बडे़ घर, घर नहीं महल को चलाने में देश-विदेश घूमते हैं। तभी तो मैं इतने बड़े घर की मालकिन हूं। उसने बताया कि मुझे तो वह प्यार से पगली पूरना कहते हैं। मैंने उस दिन पूरना का चेहरा इतने करीब से देखा था। वह शायद मुझसे अपने दिल का हाल बयान करने आई थी। मगर क्यों नहीं बता पाई? उसे शायद डर था कि उसकी दिल की बीमारी जग-जाहिर न हो जाए।


शायद इसलिए ही सब कुछ साथ लेकर अलविदा कह गई। मुझे नहीं पता था कि पूरना से मेरी यह मुलाकात आखिरी है। काश! कि वो मुझे अपनी बात बताती तो मैं अपने मन में पछतावा न रखती कि मुझमें एक अच्छी सहेली, एक अच्छी दोस्त बनने की काबिलियत नहीं। तभी तो वो मुझे अपने दिल की बात बताने आई थी वो बिना बताए ही, बिना अपना साझा किए ही चली गई।