इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया जम्मू-कश्मीर राज्य - डॉ. संदीप कटारिया


जम्मू-कश्मीर के लिए गुजरता साल इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया है। इस साल जम्मू-कश्मीर का पूरा मानचित्र ही बदल गया। जम्मू-कश्मीर का पुनर्गठन करके न सिर्फ इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में बदल दिया गया बल्कि अनुच्छेद 370 और 35ए भी इतिहास बनकर रह गया। यही नहीं जम्मू-कश्मीर में पहली बार चार महीनों से इंटरनेट सेवाएं भी बंद है। पहली बार ब्लाब डेवलपमेंट काउंसिल के चुनाव हुए हैं।
जम्मू-कश्मीर राज्य का केंद्र सरकार ने पांच अगस्त को पुनर्गठन किया और इसे दो केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर और लद्दाख बना दिए। यह केंद्र के ऐसे फैसले थे जिनकी अपेक्षा यहां पर किसी ने भी नहीं की थी। इन फैसलों के साथ ही जम्मू-कश्मीर राज्य इतिहास के पन्नों में चला गया। हालांकि लद्दाख के लोग वर्शों से केंद्र शासित प्रदेश बनाने की मांग कर रहे थे लेकिन जम्मू के लोग केंद्र शासित प्रदेश बनाने के स्थान पर जम्मू को अलग प्रदेश का दर्जा देने की मांग कर रहे थे। बावजूद इसके केंद्र के इस फैसले का जम्मू और लद्दाख दोनों ही जगहों पर स्वागत हुआ। हालांकि कश्मीर में इसके बाद स्थिति को नियंत्रण में रखने के लिए कई प्रतिबंध लगा दिए गए। मगर केंद्र सरकार के इस फैसले से जम्मू-कश्मीर का पूरा मानचित्र ही बदल गया। केंद्र सरकार ने नया मानचित्र भी जारी कर दिया। इसमें जम्मू-कश्मीर में गुलाम कश्मीर को शामिल किया गया जबकि लद्दाख को अलग केंद्र शासित राज्य दिखाया गया।
इस साल जम्मू-कश्मीर से केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 को भी हटा दिया। यही नहीं अनुच्छेद 35ए को भी खत्म कर दिया। यह ऐसे मामले थे जिन पर कई सालों से चर्चा हो रही थी और भाजपा की अगुवाई में चल रही केंद्र सरकार इसे हटाने की बात कर रही थीं पांच अगस्त के दिन ही दोनों को हटाया गया। इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर में स्थायी नागरिकता प्रमाणपत्र भी खत्म हो गया और बाहर से आने वाले उद्योगपतियों को निवेश करने के लिए भी आमत्रित किया गया। पहले धारा 370 के कारण बाहर का कोई भी नागरिक जम्मू-कश्मीर में नौकरी नहीं कर सकता था। यही नहीं यहां पर जमीन भी नहीं खरीद सकता था। अब ऐसा नहीं है। सरकार के इस कदम के बाद कोई भी बाहर का नागरिक जमीन खरीदने का हकदार हो गया है।
जम्मू-कश्मीर देश का एक ऐसा राज्य था जहां पर आधी आबादी अर्थात महिलाओं को अपने अधिकारों के लिए संघर्श करना पड़ रहा था। उनकी शादी राज्य के बाहर होने के बाद ही उन्हें तो अब राज्य में सम्पति का अधिकार लंबी लड़ाई के बाद तो मिल गया था लेकिन उनके बच्चे अभी भी इस अधिकर से वंचित थे। लेकिन धारा 370 और अनुच्छेद 35ए खत्म होने के बाद अब उन्हें भी अपने हक मिलना शुरू हो गया है। अन्य राज्यों में विवाह के बाद भी बेटियों को पूरे अधिकार मिलते थे लेकिन जम्मू-कश्मीर में ऐसा नहीं था। महाराज हरि सिंह के समय से राज्य में स्थायी नागरिकता प्रमाणपत्र को जरूरी रखा गया था। बाहर शादी होने पर पहले बेटियों को राज्य की स्थायी नागरिकता गंवानी पड़ती थी। लेकिन वर्शों कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद डॉ. सुशीला सहनी के मामले में हाईकोर्ट की फुल बेंच ने उनके स्थायी नागरिकता प्रमाणपत्र को बरकरार रखने का आदेश दिया था। यह उनकी आधी जीत थी। बेटियों को इसके बाद भी न्याय के लिए कोर्ट का सहारा लेना पड़ रहा था। बेटियों को राज्य से बाहर शादी करने के बाद स्थायी नागरिकता का अधिकार तो मिल गया, लेकिन अगर उनकी मृत्यु हो जाती थी तो जायदाद पर बच्चों का हक नहीं होता था। कारण बच्चों का राज्य में स्थायी नागरिकता प्रमाणपत्र नहीं बन पाना था। लेकिन अब अनुच्छेद 35ए खत्म होने के बाद उनके बच्चों को भी यह अधिकार मिलेंगे।
केंद्र शासित प्रदेश बने जम्मू-कश्मीर में पहले बार ब्लाक डेवलपमेंट काउंसिल के चुनाव हुए। जम्मू-कश्मीर में पंचायतों के लिए तो चुनाव होते थे लेकिन ब्लाक डेवलपमेंट काउंसित के लिए भी सरकारों ने चुनाव नहीं करवाए। इस बार सितंबर-अक्टूबर महीने में सरकार ने बीडीसी के चुनाव करवा कर एक और इतिहास रच दिया। सरकार के इस कदम  का पांचों और सरपंचों ने भी स्वागत किया।