नागरिकता देने में धार्मिक आधार पर भेदभाव क्यों? - डॉ. संदीप कटारिया



क्राइम रिफॉर्मर एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. संदीप कटारिया ने बताया कि राश्ट्रवाद की चादर में लपेटकर सांप्रदायिकता अमृत नहीं हो जाती है। उसी तरह जैसे जहर पर चांदी का वर्क चढ़ा कर आप बर्फी नहीं बना सकते हैं। हम चले थे ऐसी नागरिकता की ओर जो धर्म और जाति के आधार पर भेदभाव नहीं करती हो, लेकिन पहुंचने जा रहे हैं वहां जहां धर्म के आधार पर नागरिकता का फैसला होगा। नागरिकता को लेकर बहस करने वाले पहले यही फैसला कर लें कि इस देष में किस-किस की नागरिकता अभी तय होनी है। हम जिस रजिस्टर की बात कर रहे हैं उस रजिस्टर में क्या उन लड़कियों के भी नाम होंगे, जिन्हें बलात्कार के बाद जलाया गया है।
पष्चिम बंगाल के मालदा में एक महिला का जला हुआ शव मिला है। पुलिस का शक है कि बलात्कार के बाद हत्या हुई है। उत्तर प्रदेष के संभल जिले में 16 साल की उस लड़की की मौत हो गई जिसे बलात्कार के बाद जला दिया गया था। उन्नाव में गैंगरेप की एक पीड़िता को कोर्ट जाने के रास्ते में पकड़कर जला दिया गया। कुछ दिन पहले बिहार के बक्सर में एक महिला का शव मिला है जिसे जला दिया गया है पहचान मुष्किल हो गई है।
यह खबर भारत के बाहर खाली बैठे उन नॉन रेजिडेंट इंडियन के लिए भी है, जिन्होंने बगैर किसी भेदभाव का सामना किए नागरिकता ली है और एक अच्छी व्यवस्था का लाभ उठाकर उन देषों के लिए और भारत के लिए भी गौरव के क्षण हासिल किए हैं क्या भारत में जैसा नागरिकता बिल लाया जा रहा है, क्या इस तरह के बिल का समर्थन न्यूजीलैंड, आॅस्ट्रेलिया, पुर्तगाल, मलेषिया, अमरीका और ब्रिटेन में उनकी नागरिकता लेकर रहने वाले भारतीय भी समर्थन करेंगे, हम इतिहास भूल गए हैं एक बार ठीक से सोचिए।
दक्षिण अफ्रीका के ट्रांसवाल प्रान्त में 20 अगस्त 1906 को एक अध्यादेष जारी हुआ, वहां बसे हिन्दुस्तानी और एषियाई लोगों के पुराने परमिट रद्द होंगे और नए परमिट लेने होंगे, उसमें षिनाख्त की पहचान देकर रजिस्ट्रेषन कराना था। सबको रजिस्ट्रार के आॅफिस में अंगूठे के निषान भी देने थे। उस रजिस्ट्रेषन को हमेशा साथ रखना था। न दिखाने पर जेल की सजा थी। ट्रांसवाल की विधानसभा ने इस अध्यादेश को पास कर कानून बना दिया वो परमिट भी एक तरह की एनआरसी था। सिर्फ भारतीयों के खिलाफ नहीं था। इस फैसले की चपेट में चीनी परिवार भी थे। 11 सितंबर 1906 को जोहानिसबर्ग के पुराने एम्पायर थियेटर में एक बड़ी सभा होती है। गांधीजी के साथ सेठ हाजी हबीब ने भी भाशण दिया जो गुजरात के ही व्यापारी थे तीन हजार लोग उस सभा में थे जबकि ट्रांसवाल में 13000 हिन्दुस्तानी रहते थे। उस सभा में सेठ हाजी हबीब ने सुझाव दिया कि सभा में मौजूद सभी लोग शपथ लें कि इस कानून को नहीं मानेंगे तो गांधी जी स्तब्ध रह गए उन्होंने सभा में मौजूद लोगों को समझाया कि ईश्वर की शपथ बड़ी चीज होती है। यह तोड़ी नहीं जा सकती है। एक बार सोच लें फिर शपथ लें, सबने हाथ उठाकर शपथ ली। 11 सितंबर 1906 को सत्याग्रह का जन्म होता है।
गांधी जी और सेठ हाजी हबीब दोनों गुजरात के थे, दोनों का मजहब अलग था मगर मुल्क एक था। परदेस में भी वे हिन्दुस्तानी थे। आज गांधी के देश में गांधी को भुला दिया गया और सेठ हाजी हबीब का भी आज एनआरसी को देश भर में लागू करने की बात हो रही है। असम में जहां की आबादी साढे तीन करोड़ है। वहां सरकार के 1600 करोड़ खर्च हुए। जब भारत भर में यह काम होगा तो इसका बजट सोच लीजिए। सारा देश नोटबंदी की तरह काम छोड़ कर लाइनों में होगा और रिश्वत देकर दस्तावेज बना रहा होगा। असम में इस बात का हिसाब होना चाहिए कि आम लोगों को एनआरसी में सर्टिफिकेट बनाने को लेकर कितना खर्च करना पड़ा।
संयुक्त राश्ट्र की आम सभा में मुलाकातों के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने बांग्लादेश की प्रधानमंत्री से कहा था कि एनआरसी का बांग्लादेश पर कोई असर नहीं होगा। जब उसके बाद शेख हसीना आई थीं तो उन्होंने कहा था कि हमें यही बताया गया है कि यह भारत का आंतरिक मामला है। तो फिर सरकार बताए कि बहार निकालने की बात किससे हो रही है? अभी के ही स्तर पर अगर सेना के पूर्व अधिकारी को बांग्लादेशी बताकर डिटेंशन सेंटर में बंद कर दिया गया था, अगर ऐसी एक भी नाइंसाफी हुई तो क्या होगा?
इसकी जवाबदेही किस पर होगी? पिछली बार मोदी सरकार ने सिटिजन अमेंडमेंट बिल को राज्य सभा में समाप्त हो जाने दिया, क्योंकि पूर्वेŸार राज्यों में इसे लेकर भारी विरोध हो गया था, अब फिर से इसे लाया जा रहा है कैबिनेट ने पास कर दिया है बिल का क्या स्वरूप है। यह सार्वजनिक नहीं हुआ है लेकिन सूत्रों के हवाले से जो पता चल रहा है उसके अनुसार शरणार्थी अगर पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से होंगे, अगर वे हिन्दू, ईसाई, जैन, सिख, पारसी और बौद्ध हैं तो सभी 6 समुदायों को भारत की नागरिकता मिल जाएगी। 31 दिसंबर 2014 तक आने वालों को नागरिकता मिलेगी। यह बिल पूर्वोŸार के जनजातीय इलाकों में लागू नहीं होगा। मिजोरम, नागलैंड और अरूणाचल प्रदेश में लागू नहीं होगा।
अमित शाह बार-बार हिन्दू, ईसाई, जैन, सिख पारसी और बौद्ध का नाम लेते हैं। ईसाई हैं, मुसलमान नहीं है। क्या यह धर्म के आधार पर फर्क करना नहीं हो गया। कैसी शरणार्थी नीति है जो मजहब के आधार पर बनने जा रही है? अमित शाह क्यों एक मजहब का नाम नहीं लेते हैं। असम एनआरसी को लेकर कितना बेचैन रहा। 19 लाख लोग फाइनल लिस्ट में नहीं आए। 14 लाख हिन्दू ही निकले। 5 लाख मुस्लिम, बीजेपी के ही नेता फिर से एनआरसी कराने की मांग कर रहे हैं। क्या इसलिए कि लिस्ट में हिन्दू ज्यादा हो गए हैं। नागरिकता संशोधन बिल से इन्हें नागरिकता तो मिल जाएगी लेकिन फिर क्या धर्म के आधार पर किसी एक को अलग थलग नहीं किया जा रहा है? क्या घुसपैठिया भी मजहम के आधार पर तय होगा? क्या यह कोई नई रेखा खींची जा रही है? पिछली बार मोदी सरकार ने पूर्वोŸार में भारी विरोध के कारण इस बिल को छोड़ दिया था। अब नए संशोधनों के साथ कैबिनेट ने पास कर दिया है, लेकिन उसमें क्या-क्या आधिकारिक रूप से पता नहीं, असम में भी  इस बिल को लेकर चिन्ताएं जाहिर की जा रही। असम में अवैध घुसपैठियों को लेकर लंबा आंदोलन चला था। इसमें घुसपैठिये को मजहब के आधार पर नहीं बांटा गया था।