ई-बाजार भी अर्थव्यवस्था में मंदी का अहम कारण है - डॉ. संदीप कटारिया

क्राइम रिफॉर्मर एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. संदीप कटारिया ने बताया कि भारत में ई-बाजार तेजी से बढ़ रहा है। जिसकी वजह से कुटीर और ट्रेडिशनल  बाजार में गिरावट देखने को मिल रही है। अर्थव्यवस्था में बाजार एक अहम कड़ी है, लेकिन इसका विकेंद्रीकरण हो चला है। यूं कहें तो ग्लोबल दुनिया में पूरा बाजार मुट्ठी में हो गया है। अब भोजन से लेकर जीवन की आद्य और मॉडर्न सुविधाएं आपके बेडरूम में फैली हैं। आपके पास पैसा है तो जोमैटो और स्वीगी जैसे सुविधाएं कुछ मिनटों में आपकी डायनिंग टेबल पर होंगी। शहर तो शहर गांव की झोंपड़ी तक अमेजन, फ्लिपकॉर्ट, स्नैपडिल जैसे कंपनियां चाहत, पसंद और सुविधा के अनुसार डिलीवरी कर रहीं हैं। ऑनलाइन बाजार ग्राहक को खुला विकल्प दे रहा है। चॉइस की आजादी है और बाजार से कम कीमत पर सामान और सुविधाएं उपलब्ध हैं। यह दीगर बात है कि उसमें टिकाऊपन कितना है। भारतीय परंपरागत बाजार में छाई मंदी का यह भी एक बड़ा कारण है। ग्लोबल होती दुनिया में ई-बाजार की पैठ तेजी से बढ़ रही है जबकि ट्रेडिशनल बाजार डूब रहा है। हालात यह है कि चाइना हमारे बाजार पर पूरी पकड़ बना चुका है। चीन से भारत का व्यापार घाटा बढ़ता जा रहा है।
 अमेजन सीईओ जेफ बेजोस हाल में भारत के दौरे पर थे। भारतीय व्यापारियों ने उनकी भारत यात्रा का पुरजोर विरोध भी किया। वह प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात करना चाहते थे, लेकिन उन्हें पीएमओ से समय नहीं मिला। क्योंकि सरकार देशी व्यापार संगठनों की नाराजगी नहीं लेना चाहती थीं। अभी दिल्ली में चुनाव हैं, जिसकी वजह से सरकार ने फूंक-फूंककर कदम रखा है। प्रधानमंत्री से उनकी मुलाकात का मुख्य उद्देष्य था कि वह केंद्र सरकार के महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट मेक इन इंडिया को आगे बढ़ाना चाहते थे। उन्होंने सात हजार करोड़ के निवेष के साथ 70 हजार करोड़ के भारतीय उत्पादों के निर्यात की घोशणा की थी। बेजोस ने भारत की खूब प्रषंसा भी की, लेकिन बात नहीं बन पाई। क्योंकि छोटे और मझोले कारोबारी ई-बाजार से बेहद खफा हैं। हालांकि बेजोस की भारत प्रषंसा के पीछे उनका बाजारवाद का फंडा छुपा हुआ था। वे अपनी भारत यात्रा में इसे सफल नहीं कर पाए। इसका उन्हें बेहद मलाल रहेगा। भारत क्या बेजोस की नीतियों से खफा है, अगर नही ंतो पीएम मोदी से उनकी मुलाकात क्यों नहीं हुई। जबकि भारत अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए विदेषी विनिवेष पर अधिक जोर दिया जा रहा है। जब अमेजन भारतीय उत्पादों को दुनिया तक पहुंचाना चाहती है तो उसे मौका क्यों नहीं दिया गया। इसकी वजह मानी जा रही है कि बेजोस दक्षिणपंथी विचारधारा के खिलाफ हैं। हालांकि इसकी दूसरी वजहें भी हो सकती हैं, लेकिन मीडिया में यही कयास लगाए गए हैं। फिलहाल यह सरकार का नीतिगत फैसला है। उस पर कोई सवाल नहीं उठाए जा सकते हैं। दूसरी वजह यह भी मानी जा रही है कि जेफ बेजोस की भारत यात्रा का छोटे व्यापारी विरोध कर रहे थे। भारत में ऑनलाइन बाजार काफी जड़ें जमा चुका है। इसका सबसे बड़ा खामियाजा छोटे व्यापारियों को उठाना पड़ रहा है। कुटीर उद्योग दम तोड़ रहा है। जिसकी वजह से इसमें लगे लोगों के पास रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है। भारत में ट्रेडिशनल व्यापार की असीम संभावना है, लेकिन सरकारें उस ध्यान नहीं दे रही हैं। ऐसे उद्योग और उद्यमियों को आगे लाने के लिए सरकार के पास कोई ठोस नीति नहीं है। कुछ योजनाएं हैं भी तो वह दम तोड़ रही हैं। स्किल इंडिया स्कीम का थोड़ा असर दिखता है, लेकिन बेगारी दर लगातार बढ़ रही है। भारत में निम्नतर स्तर पर यह आंकड़ा पहुंच गया है। अधिक लोग सरकारी नौकरी पसंद करते हैं। उनकी षिक्षा काम में बाधा बनती है। कुटीर उद्योग को बढ़ावा देने के लिए सरकारों के पास कोई ठोस कार्ययोजना नहीं है। वायलेट संस्कृति ई-बाजार के लिए वरदान साबित हुई है। होम डिलीवरी और पसंद की आजादी ई-बाजार को बढ़ा रहा है। एक सामान जब तक न पसंद आए उसकी घर में डिलीवरी पाई जा सकती है। दूसरी वजह आय की युवा पीढ़ी के पास समय का बेहद अभाव है। वह जिंदगी में इतना उलझा है कि वह अपने परिवार के लिए समय नहीं निकाल पाता है। वह भौतिकवाद की सारी वस्तुओं के साथ भोजन तक की होम डिलीवरी करा रहा है।
डॉ. कटारिया ने बताया कि ई-बाजार ने परम्परागत बाजार की खामियों से भी मुक्ति दिलाई है, जिसकी वजह से इसका ट्रेड बढ़ा है। बाजारवाद की नई आजादी को नया आयाम मिला है। अगर आपको जेब, वायलेट और बैंक में पैसा है तो घर से बाजार जाने की जरूरत नहीं है। जीवन की सारी सुविधाएं आपको उपलब्ध हैं। मध्यमवर्गीय परिवार इस बाजारवाद का अधिक षिकार हो रहा है। घर में बच्चों की एक डिमांड पर स्वीगी और जोमैटो की सुविधा मौजूद है। बच्चों में मोटापे एक वजह यह भी है। ई-बाजारवाद ऐसा प्लेटफॉर्म है जहाँ पैसा फेंको और तमाषा देखो की नीति का अनुसरण किया जा रहा है। जबकि हमारे टेªडिषनल बाजार में ऐसी बात नहीं है। आप शहर में हैं या गांव में तो वहां आपके पास पैसा न होने पर भी आपको राषन, दूध, फल, चाय-नाष्ता और दूसरी वस्तुएं एक निष्चित सीमा के लिए मिल जाएंगी। आप नौक्री पेशा हैं और आपकी जेब समय से पहले खाली हो गई तो परम्परागत बाजार आपकी जरूरत का ख्याल रखता है। ट्रेडिशनल बजार मानवतावादी नजरिया रखता है जबकि ई-बाजार में व्यापार पहली प्राथमिकता है।